मेरा इज़हार

आँखों से आँखें चार हुईं

बातें हुई ,मुस्कानें हुईं

हफ़्ते दर हफ़्ते

भले ही काम के सिलसिले में

उनसे हमारी मुलाक़ातें हुईं

उसकी सादगी कुछ इस क़दर भा गयी

कि पहली नज़र में वो हमें रास आ गयी

अब क़लम उठने लगी

उस पर कुछ लिखने लगी

पागल से तो हम पहले से थे

अब हमारी नादानियाँ बढ़ने लगीं

बेसब्री से दिल थामकर

इन्तज़ार करते थे

हफ़्ते के एक दिन का

क्यूँकि वही दिन तो था

जब प्यार से छूने आता था हमें

एक झोंका पवन का

एक लड़का जो सबको समझाता था

कि प्यार-व्यार सब धोखा है

उस दिन अपने दिल पे हाथ रखकर कहने लगा

कि अब तो कुछ कुछ होता है

बातें यूहीं चलती रहीं

दिन ढलते रहे, शामें होती रहीं

और इन दिनों में

हफ़्ते का

वो मुलाक़ात वाला

दिन भी ढल गया

अब बातों के लिए कोई बहाना ना था

मुलाक़ातों के लिए कोई वजह ना थी

एक दिन उस लड़के ने

अपने दिल की बात

अपने यारों को बतायी

सबने कहा

बता दे उसे

कितनी मोहब्बत है तुझे

जता दे उसे

सवाल दिमाग़ में बहुत थे

जिनके जवाब सिर्फ़ उसके पास थे

क्या तेरी बात बनेगी

क्या वो तुझे अपना साथी चुनेगी

लेकिन हम तो जैसे ख़ुद को

रांझणा का कुन्दन और

उसको जोया मान चुके थे

एक साथ ज़िंदगी बिताने के

सारे सपने बुन चुके थे

रात का समय था

हमारी उँगलियाँ कीपैड पे चलने लगी

दिल की बातों को शब्दों में लिखने लगी

और हमारा ये संदेश

उन तक डिलिवर हो चुका था

आधे घंटे तक उनका कोई जवाब ना आया

लगा शायद इस ख़ामोशी में ही उनका पैग़ाम आया

तभी उन्होंने कुछ लिखना शुरू किया
दिल ने फिर से धड़कना शुरू किया
उन्होंने कहा

जनाब इस मज़ाक़ के खेल को क्यूँ आगे बढ़ा रहे हो

इतनी रात गये हमें क्यूँ सता रहे हो

दिमाग़ जवाब पढ़ चुका था

लेकिन दिल मानने को तैयार ना था

तो हमने कहा
सुनिएहमें कोई दिलचस्पी नहीं है

इस तरह के मज़ाक़ों का खेल खेलने में

सच्चा इश्क़ है तुमसे,
कोई डर नहीं है

अब ये सच्चे बोल बोलने में

उनका जवाब आया
कोई बात नहीं जनाब

कहानी में आपको अकेला रहना है

नाराज़ नहीं हैं तुमसे

हमें बस इतना कहना है

अब हमारा दिल भी ये बात मान चुका था

थोड़ा दुखी था पर सच्चाई जान चुका था

फिर दिमाग़ ने दिल का साथ दिया

बहुत देर तक समझाया उसे

ज़िंदगी का दस्तूर क्या है

ये बतलाया उसे

आख़िरकार वो समझ गया

समय रहते संभल गया

2 thoughts on “मेरा इज़हार”

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