सतरंगी सात रंग

हल्की हल्की बारिश में मीठी मीठी धूप में

वो सतरंगी सात रंग
आसमाँ में उतर आये
तभी एक था वहां कोई
जो उन रंगों में एक नया रंग ढूँढ रहा था
बहुत कोशिश की उसने ढूँढने की
लेकिन ढूँढ ही ना पाया
शायद कुछ कमियां थी उस ढूँढने वाले में
जो पूरी होनी जरूरी थीं
फिर वो हल्की हल्की बूंदें तेज़ हो गयीं
सूरज बादलों की ओट में छिप गया
और वो सतरंगी सात रंग कहीं गायब हो गए

जब अपनी दुनिया से इस दुनिया मे

जब अपनी दुनिया से इस दुनिया में आता हूँ
तो सहम सा जाता हूँ मैं
हाँ माँ सहम जाता हूँ मैं
जब इस दुनिया के फैसले मेरी दुनिया से परे होते हैं
और जब मेरे सपने इस दुनिया का मज़ाक बन जाते हैं
तो सहम जाता हूँ मैं
जब इस जहां की रात में मेरे जहां का सवेरा होता है
और इस जहां के सवेरे में मेरे जहां की रात
तो इस वक़्त बेवक़्त की रोशनी में
सहम जाता हूँ मैं
माँ ये दोनों सोच बस तुम पर आकर मिलती हैं
लेकिन जब तुम मुझसे दूर जाने की बात करती हो
तो फ़िर से सहम जाता हूँ मैं
हां माँ सहम जाता हूँ मैं

क्या करोगे उन गलियों में जाकर

क्या करोगे उन गलियों में जाकर
बहुत छोटी और सूनी हैं वो गलियां
अब वो मौन हो चुकी हैं
तुम ना उन्हें मौन रहने दो
आओ बैठो
तुम मेरे साथ चलो
उम्र भर का साथ नहीं
बस थोड़ी सी ही दूर तक
जाएँगे हम
इतनी भी क्या जल्दी है
सुबह होने में अभी काफ़ी देर है
बहुत परेशान लगते हो तुम
बोलो क्या लोगे चाय ठंडा गरम
तुम उदास ना होना
अगर फिर से तुम उन सूनी गलियों में कहीं खो जाओ
तुम बस रात का इंतज़ार करना

और अपनी आँखें बंद कर लेना
मैं फिर से पास आकर
साथ दूँगी तुम्हारा

ये वादा है मेरा

तुम इजाज़त तो दो

अगर बादल हूँ मैं तुम्हारा

तो ज़मीं हो तुम मेरी

गरजके बरस जाऊँगा मैं तुमपे

और छूलूँगा तुम्हें अपनी बूदों से

तुम वो सावन का मौसम

आने तो दो

अगर एक कोरा काग़ज़ हूँ मैं

तो एक सुंदर कविता हो तुम

हर पढ़ने वाला मर मिटेगा तुमपे

और जी उठूँगा मैं

मिलकर तुम्हारे शब्दों से

तुम ख़ुद को इस काग़ज़ पर

उतरने तो दो

अगर एक बाँसुरी हूँ मैं

तो एक मीठी धुन हो तुम

हर सुनने वाला खोना चाहेगा तुम्में

और जाग उठूँगा मैं

होकर तुम्हारी सरगम से

तुम उस वादक की साँसे

मुझमें भरने तो दो

कैसे अपनी प्रीत मैं समझाऊँतुम्हें

अपने पन्नों को खोलकर कितना मैं बतलाऊँ तुम्हें

पर्दा उठा भी दूँ कुछ राजों से कुछ अनकही बातों से

तुम मुस्कुराकर मुझे कहने की इजाज़त तो दो

तुम मुस्कुराकर मुझे कहने की इजाज़त तो दो

याद तो होगा ना माँ

याद तो होगा ना तुम्हें माँ

वो घना हरा भरा बरगद का पेड़

वो तन के खड़ा सा बरगद का पेड़

जो घर से महज़ कुछ दूर सा था

लेकिन दिल के बहुत नज़दीक सा था

जब भी मैं तुमसे रूठा करता

ज़िद पे अपनी अड़ा करता

रूठकर तुमसे मैं माँ

भाग जाता उस पेड़ के पास

पास जाकर उसी पेड़ के

तकता रहता तुम्हारे आने की आस

मुझे मनाने तुम जो भागी दौड़ी आती

आते ही करुण स्वर में तुम

लल्ला लल्ला चिल्लाती

मेरे नन्हे शरीर को मैं माँ

बरगद के पीछे छिपा लेता

छुप कर उसके पीछे मैं

मंद ही मंद मुस्का लेता

अचानक से

तेरी पायल की छम छम

थोड़ी तेज़ सी जो हो जाती

झट से ऊँचे मैं चढ़ जाता

ऊँचे चढ़ता देख मुझे माँ

व्याकुल हो तुम उठती

अपनी बाँहें फैलाकर

ममता का आँचल दिखलाकर

मुझे घर चलने को कहती

छोड़ देता ख़ुद को मैं माँ तुम्में

ग़ुस्सा मेरा थम जाता

रूठने मनाने का क़िस्सा

बस जैसे रुक जाता

आतेही बाहों में तेरी

आलिंगन से तू भर देती

वात्सल्य आँखों से छलक के आता

मुझको पूरा तू कर देती

याद तो होगा ना तुम्हें माँ

वो घना हरा भरा बरगद का पेड़

वो तन के खड़ा सा बरगद का पेड़

-Tinkoo bansal

कभी कोशिश की है

क्या कभी कोशिश की है

रात के अहसास को महसूस करने की

क्या कभी कोशिश की है

इसके सन्नाटे के पीछे छिपे संगीत को सुनने की

अगर कभी करो तो पता चलेगा

कि कितनी मधुर है ये रात

कितनी शांत कितनी शीतल

हर ज़र्रे को महकाने वाली

कवि की लिखी कविता है ये रात

अपने आग़ोश में

तमाम सवालों तमाम नसीहतों को

थकाकर सुलाने वाली

हमदर्द है ये रात

अपने लहराते गुनगुनाते मंद

पवन के झोंको से

स्पर्श करने वाली

एक अपनेपन का एहसास है ये रात

बच्चे की जिद को पूरी करते

एक झट से पानी में

उतरते चाँद की

चाँदनी को

उसका ग़ुरूर देने वाली

एक सच्ची सुंदर दोस्ती है ये रात

एक नन्हा अपनी उँगलियों में तारों को गिनता

टूटते तारों में एक प्यारी सी ख़्वाहिश करता

ताउम्र उन बचपन के खिलौनों को सहेजने वाली

हल्की सी मुस्कान की वजह हैये रात

क्या कभी कोशिश की है

रात के अहसास को महसूस करने की

क्या कभी कोशिश की है

इसके सन्नाटे के पीछे छिपे संगीत को सुनने की

-Tinkoo bansal

मेरा इज़हार

आँखों से आँखें चार हुईं

बातें हुई ,मुस्कानें हुईं

हफ़्ते दर हफ़्ते

भले ही काम के सिलसिले में

उनसे हमारी मुलाक़ातें हुईं

उसकी सादगी कुछ इस क़दर भा गयी

कि पहली नज़र में वो हमें रास आ गयी

अब क़लम उठने लगी

उस पर कुछ लिखने लगी

पागल से तो हम पहले से थे

अब हमारी नादानियाँ बढ़ने लगीं

बेसब्री से दिल थामकर

इन्तज़ार करते थे

हफ़्ते के एक दिन का

क्यूँकि वही दिन तो था

जब प्यार से छूने आता था हमें

एक झोंका पवन का

एक लड़का जो सबको समझाता था

कि प्यार-व्यार सब धोखा है

उस दिन अपने दिल पे हाथ रखकर कहने लगा

कि अब तो कुछ कुछ होता है

बातें यूहीं चलती रहीं

दिन ढलते रहे, शामें होती रहीं

और इन दिनों में

हफ़्ते का

वो मुलाक़ात वाला

दिन भी ढल गया

अब बातों के लिए कोई बहाना ना था

मुलाक़ातों के लिए कोई वजह ना थी

एक दिन उस लड़के ने

अपने दिल की बात

अपने यारों को बतायी

सबने कहा

बता दे उसे

कितनी मोहब्बत है तुझे

जता दे उसे

सवाल दिमाग़ में बहुत थे

जिनके जवाब सिर्फ़ उसके पास थे

क्या तेरी बात बनेगी

क्या वो तुझे अपना साथी चुनेगी

लेकिन हम तो जैसे ख़ुद को

रांझणा का कुन्दन और

उसको जोया मान चुके थे

एक साथ ज़िंदगी बिताने के

सारे सपने बुन चुके थे

रात का समय था

हमारी उँगलियाँ कीपैड पे चलने लगी

दिल की बातों को शब्दों में लिखने लगी

और हमारा ये संदेश

उन तक डिलिवर हो चुका था

आधे घंटे तक उनका कोई जवाब ना आया

लगा शायद इस ख़ामोशी में ही उनका पैग़ाम आया

तभी उन्होंने कुछ लिखना शुरू किया
दिल ने फिर से धड़कना शुरू किया
उन्होंने कहा

जनाब इस मज़ाक़ के खेल को क्यूँ आगे बढ़ा रहे हो

इतनी रात गये हमें क्यूँ सता रहे हो

दिमाग़ जवाब पढ़ चुका था

लेकिन दिल मानने को तैयार ना था

तो हमने कहा
सुनिएहमें कोई दिलचस्पी नहीं है

इस तरह के मज़ाक़ों का खेल खेलने में

सच्चा इश्क़ है तुमसे,
कोई डर नहीं है

अब ये सच्चे बोल बोलने में

उनका जवाब आया
कोई बात नहीं जनाब

कहानी में आपको अकेला रहना है

नाराज़ नहीं हैं तुमसे

हमें बस इतना कहना है

अब हमारा दिल भी ये बात मान चुका था

थोड़ा दुखी था पर सच्चाई जान चुका था

फिर दिमाग़ ने दिल का साथ दिया

बहुत देर तक समझाया उसे

ज़िंदगी का दस्तूर क्या है

ये बतलाया उसे

आख़िरकार वो समझ गया

समय रहते संभल गया